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जसोदा मैया, अब हमने यह जानी।
कान्ह कुंअर सो तैं सुत पाये, याते फिरत फुलानी।। टेर ।।
यद्यपि तुम हो अति बड़ भागिनि, यह जग सौं नहिं छानी।
हम भी बालसखा मोहन के, कम नहिं हैं अभिमानी।। 1 ।।
खेलत रूठत लड़त श्याम संग, करते नित मनमानी।
डरपत काल कराल हमहिं ते, श्याम निकट पहिचानी।। 2 ।।
ब्रह्मादिक सुर वन्दत जिन्ह को, करत सुफल निज बानी।
‘श्यामसखा’ वे मित्र हमारे तोसे कान्ह छिपानी।। 3 ।।