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'''गोप-रूप वृन्दावन-चारी, ब्रज-जन पूरन काम।''' | '''गोप-रूप वृन्दावन-चारी, ब्रज-जन पूरन काम।''' | ||
'''याही सौं हित चित्त बढ़ो नित, दिन दिन पल छिन जाम।। 1 ।।''' | '''याही सौं हित चित्त बढ़ो नित, दिन दिन पल छिन जाम।। 1 ।।''' | ||
− | '''नन्दीसुर | + | '''नन्दीसुर गोवर्धन गोकुल, बरसानो बिसराम।''' |
'''‘नागरिदास’ द्वारिका मथुरा, इनसौं कैसौ काम।। 2 ।।'''</poem> | '''‘नागरिदास’ द्वारिका मथुरा, इनसौं कैसौ काम।। 2 ।।'''</poem> | ||
01:18, 24 मार्च 2018 के समय का अवतरण
श्रीकृष्णलीला भजनावली
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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