प्रथम स्कन्ध: चतुर्दश अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण: प्रथम स्कन्धः चतुर्दश अध्यायः श्लोक 16-34 का हिन्दी अनुवाद
शौनक जी! राजा युधिष्ठिर इन भयंकर उत्पातों को देखकर मन-ही-मन चिन्तित हो रहे थे कि द्वारका से लौटकर अर्जुन आये। युधिष्ठिर ने देखा, अर्जुन इतने आतुर हो रहे हैं, जितने पहले कभी नहीं देखे गये थे। मुँह लटका हुआ है, कमल-सरीखे नेत्रों से आँसू बह रहे हैं और शरीर में बिलकुल कान्ति नहीं है। उनको इस रूप में अपने चरणों में पड़ा देखकर युधिष्ठिर घबरा गये। देवर्षि नारद की बातें याद करके उन्होंने सुहृदों के सामने ही अर्जुन से पूछा। युधिष्ठिर ने कहा- ‘भाई! द्वारकापुरी में हमारे स्वजन-सम्बन्धी मधु, भोज, दशार्ह, आर्ह, सात्वत, अन्धक और वृष्णिवंशी यादव कुशल से तो हैं? हमारे माननीय नाना शूरसेन जी प्रसन्न हैं? अपने छोटे भाई सहित मामा वसुदेव जी तो कुशलपूर्वक हैं? उनकी पत्नियाँ हमारी मामी देवकी आदि सातों बहिनें अपने पुत्रों और बहुओं के साथ आनन्द से तो हैं? जिनका पुत्र कंस बड़ा ही दुष्ट था, वे राजा उग्रसेन अपने छोटे भाई देवक के साथ जीवित तो हैं न? हृदीक, उनके पुत्र कृतवर्मा, अक्रूर, जयन्त, गद, सारण तथा शत्रुजित आदि यादव वीर सकुशल हैं न? यादवों के प्रभु बलराम जी तो आनन्द से हैं? वृष्णिवंश के सर्वश्रेष्ठ महारथी प्रद्युम्न सुख से तो हैं? युद्ध में बड़ी फुर्ती दिखलाने वाले भगवान अनिरुद्ध आनन्द से हैं न? सुषेण, चारुदेष्ण, जाम्बवतीनन्दन साम्ब और अपने पुत्रों के सहित ऋषभ आदि भगवान श्रीकृष्ण के अन्य सब पुत्र भी प्रसन्न हैं न? भगवान श्रीकृष्ण के सेवक श्रुतदेव, उद्धव आदि और दूसरे सुनन्द-नन्द आदि प्रधान यदुवंशी, जो भगवान श्रीकृष्ण और बलराम के बाहुबल से सुरक्षित हैं, सब-के-सब सकुशल हैं न? हमसे अत्यन्त प्रेम करने वाले वे लोग कभी हमारा कुशल-मंगल भी पूछते हैं? भक्तवत्सल ब्राह्मणभक्त भगवान श्रीकृष्ण अपने स्वजनों के साथ द्वारका की सुधर्मा सभा में सुखपूर्वक विराजते हैं न? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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