श्रीमद्भागवत महापुराण चतुर्थ स्कन्ध अध्याय 1 श्लोक 1-15

चतुर्थ स्कन्ध: प्रथम अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: चतुर्थ स्कन्ध: प्रथम अध्यायः श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद


स्वायम्भुव-मनु की कन्याओं के वंश का वर्णन

श्रीमैत्रेय जी कहते हैं- विदुर जी! स्वायम्भुव मनु के महारानी शतरूपा से प्रियव्रत और उत्तानपाद- इन दो पुत्रों के सिवा तीन कन्याएँ भी हुई थीं; वे आकूति, देवहूति और प्रसूति नाम से विख्यात थीं। आकूति का, यद्यपि उसके भाई थे तो भी, महारानी शतरूपा की अनुमति से उन्होंने रुचि प्रजापति के साथ ‘पुत्रिकाधर्म के[1] अनुसार विवाह किया।

प्रजापति रुचि भगवान् के अनन्य चिन्तन के कारण ब्रह्मतेज से सम्पन्न थे। उन्होंने आकूति के गर्भ से एक पुरुष और स्त्री का जोड़ा उत्पन्न किया। उनमें जो पुरुष था, वह साक्षात् यज्ञस्वरूपधारी भगवान् विष्णु थे और जो स्त्री थी, वह भगवान् से कभी अलग न रहने वाली लक्ष्मी जी की अंशस्वरूपा ‘दक्षिणा’ थी। मनु जी अपनी पुत्री आकूति के उस परमतेजस्वी पुत्र को बड़ी प्रसन्नता से अपने घर ले आये और दक्षिणा को रुचि प्रजापति ने अपने पास रखा। जब दक्षिणा विवाह के योग्य हुई तो उसने यज्ञ भगवान् को ही पतिरूप में प्राप्त करने की इच्छा की, तब भगवान् यज्ञ पुरुष ने उससे विवाह किया। इससे दक्षिणा को बड़ा सन्तोष हुआ। भगवान् ने प्रसन्न होकर उससे बारह पुत्र उत्पन्न किये। उनके नाम हैं- तोष, प्रतोष, सन्तोष, भद्र, शान्ति, इडस्पति, इध्म, कवि, विभु, स्वह्न, सुदेव ब्राह्मण और रोचन। ये ही स्वायम्भुव मन्वन्तर में ‘तुषित’ नाम के देवता हुए। उस मन्वन्तर में मरीचि आदि सप्तर्षि थे, भगवान् यज्ञ ही देवताओं के अधीश्वर इन्द्र थे और महान् प्रभावशाली प्रियव्रत एवं उत्तानपाद मनुपुत्र थे। वह मन्वन्तर उन्हीं दोनों के बेटों, पोतों और दाहित्रों के वंश से छा गया।

प्यारे विदुर जी! मनु जी ने अपनी दूसरी कन्या देवहूति कर्दम जी को ब्याही थी। उसके सम्बन्ध की प्रायः सभी बातें तुम मुझसे सुन चुके हो। भगवान् मनु ने अपनी तीसरी कन्या प्रसूति का विवाह ब्रह्माजी के पुत्र दक्ष प्रजापति से किया था; उसकी विशाल वंश परम्परा तो सारी त्रिलोकी में फैली हुई है। मैं कर्दम जी की नौ कन्याओं का, जो नौ ब्रह्मार्षियों से ब्याही गयी थीं, पहले ही वर्णन कर चुका हूँ। अब उनकी वंश परम्परा का वर्णन करता हूँ, सुनो। मरीचि ऋषि की पत्नी कर्दम जी की बेटी कला से कश्यप और पूर्णिमा नामक दो पुत्र हुए, जिनके वंश से यह सारा जगत् भरा हुआ है।

शत्रुपातन विदुर जी! पूर्णिमा के विरज और विश्वग नाम के दो पुत्र तथा देवकुल्या नाम की एक कन्या हुई। यही दूसरे जन्म में श्रीहरि के चरणों के धोवन से देवनदी गंगा के रूप प्रकट हुई। अत्रि की पत्नी अनसूया से दत्तात्रेय, दुर्वासा और चन्द्रमा नाम के तीन परम यशस्वी पुत्र हुए। ये क्रमशः भगवान् विष्णु, शंकर और ब्रह्मा के अंश से उत्पन्न हुए थे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ‘पुत्रिकाधर्म’ के अनुसार किये जाने वाले विवाह में यह शर्त होती है कि कन्या के जो पहला पुत्र होगा, उसे कन्या के पिता ले लेंगे।

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