अष्टम स्कन्ध: अथैकादशोऽध्याय: अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण: अष्टम स्कन्ध: एकादश अध्यायः श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद
श्रीशुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित! परम पुरुष भगवान् की अहैतुकी कृपा से देवताओं की घबराहट जाती रही, उनमें नवीन उत्साह का संचार हो गया। पहले इन्द्र, वायु और देवगण रणभूमि में जिन-जिन दैत्यों से आहत हुए थे, उन्हीं के ऊपर अब वे पूरी शक्ति से प्रहार करने लगे। परम ऐश्वर्यशाली इन्द्र ने बलि से लड़ते-लड़ते जब उन पर क्रोध करके वज्र उठाया तब सारी प्रजा में हाहाकार मच गया। बलि अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होकर बड़े उत्साह से युद्ध भूमि में बड़ी निर्भयता से डटकर विचर रहे थे। उनको अपने सामने ही देखकर हाथ में वज्र लिये हुए इन्द्र ने उनका तिरस्कार करके कहा- ‘मूर्ख! जैसे नट बच्चों की आँखें बाँधकर अपने जादू से उनका धन ऐंठ लेता है, वैसे ही तू माया की चालों से हम पर विजय प्राप्त करना चाहता है। तुझे पता नहीं कि हम लोग माया के स्वामी हैं, वह हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। जो मूर्ख माया के द्वारा स्वर्ग पर अधिकार करना चाहते हैं और उसको लाँघकर ऊपर के लोकों में भी धाक जमाना चाहते हैं-उन लुटेरे मूर्खों को मैं उनके पहले स्थान से भी नीचे पटक देता हूँ। नासमझ! तूने माया की बड़ी-बड़ी चालें चली है। देख, आज मैं अपने सौ धार वाले वज्र से तेरा सिर धड़ से अलग किये देता हूँ। तू अपने भाई-बन्धुओं के साथ जो कुछ कर सकता हो, करके देख ले’। बलि ने कहा- इन्द्र! जो लोग काल शक्ति की प्रेरणा से अपने कर्म के अनुसार युद्ध करते हैं-उन्हें जीत या हार, यश या अपयश अथवा मृत्यु मिलती ही है। इसी से ज्ञानीजन इस जगत् को काल के अधीन समझकर न तो विजय होने पर हर्ष से फूल उठते हैं और न तो अपकीर्ति, हार अथवा म्रत्यु से शोक के ही वशीभूत होते हैं। तुम लोग इस तत्त्व से अनभिज्ञ हो। तुम लोग अपने को जय-पराजय आदि का कारण-कर्ता मानते हो, इसलिये महात्माओं की दृष्टि से तुम शोचनीय हो। हम तुम्हारे मर्मस्पर्शी वचन को स्वीकार ही नहीं करते, फिर हमें दुःख क्यों होने लगा? श्रीशुकदेव जी कहते हैं- वीर बलि ने इन्द्र को इस प्रकार फटकारा। बलि की फटकार से इन्द्र कुछ झेंप गये। तब तक वीरों का मान-मर्दन करने वाले बलि ने अपने धनुष को कान तक खींच-खींचकर बहुत-से बाण मारे। सत्यवादी देवशत्रु बलि ने इस प्रकार इन्द्र का अत्यन्त तिरस्कार किया। अब तो इन्द्र अंकुश से मारे हुए हाथी की तरह और भी चिढ़ गये। बलि का आपेक्ष वे सहन न कर सके। शत्रुघाती इन्द्र ने बलि पर अपने अमोघ वज्र का प्रहार किया। उसकी चोट से बलि पंख कटे हुए पर्वत के समान अपने विमान के साथ पृथ्वी पर गिर पड़े। बलि का एक बड़ा हितैषी और घनिष्ठ मित्र जम्भासुर था। अपने मित्र के गिर जाने पर भी उनको मारने का बदला लेने के लिये वह इन्द्र के सामने आ खड़ा हुआ। सिंह पर चढ़कर वह इन्द्र के पास पहुँच गया और बड़े वेग से अपनी गदा उठाकर उनके जत्रुस्थान (हँसली) पर प्रहार किया। साथ ही उस महाबली ने ऐरावत पर भी एक गदा जमायी। गदा की चोट से ऐरावत को बड़ी पीड़ा हुई, उसने व्याकुलता से घुटने टेक दिये और फिर मुर्च्छित हो गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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