श्रीमद्भागवत महापुराण षष्ठ स्कन्ध अध्याय 6 श्लोक 1-19

षष्ठ स्कन्ध: षष्ठ अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: षष्ठ स्कन्ध: षष्ठ अध्यायः श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद


दक्ष प्रजापति की साठ कन्याओं के वंश का विवरण

श्रीशुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित! तदनन्तर ब्रह्मा जी के बहुत अनुनय-विनय करने पर दक्ष प्रजापति ने अपनी पत्नी असिक्नी के गर्भ से साठ कन्याएँ उत्पन्न कीं। वे सभी अपने पिता दक्ष से बहुत प्रेम करती थीं। दक्ष प्रजापति ने उनमें से दस कन्याएँ धर्म को, तेरह कश्यप को, सत्ताईस चन्द्रमा को, दो भूत को, दो अंगिरा को, दो कृशाश्व को और शेष चार तार्क्ष्य नामधारी कश्यप को ही ब्याह दीं।

परीक्षित! तुम इन दक्ष कन्याओं और इनकी सन्तानों के नाम मुझसे सुनो। इन्हीं की वंश परम्परा तीनों लोकों में फैली हुई है। धर्म की दस पत्नियाँ थीं- भानु, लम्बा, ककुभ्, जामि, विश्वा, साध्या, मरुत्वती, वसु, मुहूर्ता और संकल्पा। इनके पुत्रों के नाम सुनो। राजन्! भानु का पुत्र देवऋषभ और उसका इन्द्रसेन था। लम्बा का पुत्र हुआ विद्योत और उसके मेघगण। ककुभ् का पुत्र हुआ संकट, उसका कीकट और कीकट के पुत्र हुए पृथ्वी के सम्पूर्ण दुर्गों (किलों) के अभिमानी देवता। जामि के पुत्र का नाम था स्वर्ग और उसका पुत्र हुआ नन्दी। विश्वा के विश्वेदेव हुए। उनके कोई सन्तान न हुई। साध्या से साध्यगण हुए और उनका पुत्र हुआ अर्थसिद्धि।

मरुत्वती के दो पुत्र हुए- मरुत्वान् और जयन्त। जयन्त भगवान् वासुदेव के अंश हैं, जिन्हें लोग उपेन्द्र भी कहते हैं। मुहूर्ता से मूहूर्त के अभिमानी देवता उत्पन्न हुए। ये अपने-अपने मूहूर्त में जीवों को उनके कर्मानुसार फल देते हैं। संकल्पा का पुत्र हुआ संकल्प और उसका काम। वसु के पुत्र आठों वसु हुए। उनके नाम मुझसे सुनो। द्रोण, प्राण, ध्रुव, अर्क, अग्नि, दोष, वसु और विभावसु। द्रोण की पत्नी का नाम है अभिमति। उससे हर्ष, शोक, भय आदि के अभिमानी देवता उत्पन्न हुए। प्राण की पत्नी ऊर्जस्वती के गर्भ से सह, आयु और पुरोजव नाम के तीन पुत्र हुए। ध्रुव की पत्नी धरणी ने अनेक नगरों के अभिमानी देवता उत्पन्न किये। अर्क की पत्नी वासना के गर्भ से तर्ष (तृष्णा) आदि पुत्र हुए। अग्नि नामक वसु की पत्नी धारा के गर्भ से द्रविणक आदि बहुत-से पुत्र उत्पन्न हुए। कृत्तिका पुत्र स्कन्द भी अग्नि से ही उत्पन्न हुए। उनसे विशाख आदि का जन्म हुआ।

दोष की पत्नी शर्वरी के गर्भ से शिशुमार का जन्म हुआ। वह भगवान् का कलावतार है। वसु की पत्नी अंगीरसी से शिल्पकला के अधिपति विश्वकर्मा जी हुए। विश्वकर्मा के उनकी भार्या कृती के गर्भ से चाक्षुष मनु हुए और उनके पुत्र विश्वेदेव एवं साध्यगण हुए। विभावसु की पत्नी उषा से तीन पुत्र हुए- वयुष्ट, रोचिष् और आतप। उनमें से आतप के पंचयाम (दिवस) नामक पुत्र हुआ, उसी के कारण सब जीव अपने-अपने कार्यों में लगे रहते हैं। भूत की पत्नी दक्षनन्दिनी सरूपा ने कोटि-कोटि रुद्रगण उत्पन्न किये। इनमें रैवत, अज, भव, भीम, वाम, उग्र, वृषाकपि, अजैकपाद, अहिर्बुध्न्य, बहुरूप, और महान्- ये ग्यारह मुख्य हैं। भूत की दूसरी पत्नी भूता से भयंकर भूत और विनायकादि का जन्म हुआ। ये सब ग्यारहवें प्रधान रुद्र महान् के पार्षद हुए। अंगिरा प्रजापति की प्रथम पत्नी स्वधा ने पितृगण को उत्पन्न किया और दूसरी पत्नी सती ने अथर्वंगिरस नामक वेद को ही पुत्र रूप में स्वीकार कर लिया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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