श्रीमद्भागवत महापुराण नवम स्कन्ध अध्याय 8 श्लोक 1-13

नवम स्कन्ध: अथाष्टमोऽध्याय: अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: नवम स्कन्ध: अष्टम अध्यायः श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद


सगर-चरित्र

श्रीशुकदेव जी कहते हैं- रोहित का पुत्र था हरित। हरित से चम्प हुआ। उसी ने चम्पापुरी बसायी। चम्प से सुदेव और उसका पुत्र विजय हुआ। विजय का भरुक, भरुक का वृक और वृक का पुत्र हुआ बाहुक। शत्रुओं ने बाहुक से राज्य छीन लिया, तब वह अपनी पत्नी के साथ वन में चला गया। वन में जाने पर बुढ़ापे के कारण जब बाहुक की मृत्यु हो गयी, तब उसकी पत्नी भी उसके साथ सती होने को उद्यत हुई। परन्तु महर्षि और्व को यह मालूम था कि इसे गर्भ है। इसलिये उन्होंने उसे सती होने से रोक दिया। जब उसकी सौतों को यह बात मालूम हुई तो उन्होंने उसे भोजन के साथ गर (विष) दे दिया। परन्तु गर्भ पर उस विष का कोई प्रभाव नहीं पड़ा; बल्कि उस विष को लिये हुए ही एक बालक का जन्म हुआ, जो गर के साथ पैदा होने के कारण ‘सगर’ कहलाया। सगर बड़े यशस्वी राजा हुए।

सगर चक्रवर्ती सम्राट थे। उन्हीं के पुत्रों ने पृथ्वी खोदकर समुद्र बना दिया था। सगर ने अपने गुरुदेव और्व की आज्ञा मानकर तालजंघ, यवन, शक, हैहय और बर्बर जाति के लोगों का वध नहीं किया, बल्कि उन्हें विरूप बना दिया। उनमें से कुछ के सिर मुड़वा दिये, कुछ के मूँछ-दाढ़ी रखवा दी, कुछ को खुले बालों वाला बना दिया और कुछ को आधा मुँड़वा दिया। कुछ लोगों को सगर ने केवल वस्त्र ओढ़ने की ही आज्ञा दी, पहनने की नहीं। और कुछ को केवल लँगोटी पहनने को ही कहा, ओढ़ने को नहीं। इसके बाद राजा सगर ने और्व ऋषि के उपदेशानुसार अश्वमेध यज्ञ के द्वारा सपूर्ण वेद एवं देवतामय, आत्मस्वरूप, सर्वशक्तिमान भगवान की आराधना की। उसके यज्ञ में जो घोड़ा छोड़ा गया था, उसे इन्द्र ने चुरा लिया। उस समय महारानी सुमति के गर्भ से उत्पन्न सगर के पुत्रों ने अपने पिता के आज्ञानुसार घोड़े के लिये सारी पृथ्वी छान डाली। जब उन्हें कहीं घोड़ा न मिला, तब उन्होंने बड़े घमण्ड से सब ओर से पृथ्वी को खोद डाला। खोदते-खोदते उन्हें पूर्व और उत्तर के कोने पर कपिल मुनि के पास अपना घोड़ा दिखायी दिया। घोड़े को देखकर वे साठ हजार राजकुमार शस्त्र उठाकर यह कहते हुए उनकी ओर दौड़ पड़े कि ‘यही हमारे घोड़े को चुराने वाला चोर है। देखो तो सही, इसने इस समय कैसे आँखें मूँद रखी हैं! यह पापी है। इसको मार डालो, मार डालो!’

उसी समय कपिल मुनि ने अपनी पलकें खोलीं। इन्द्र ने राजकुमारों की बुद्धि हर ली थी, इसी से उन्होंने कपिल मुनि जैसे महापुरुष का तिरस्कार किया। इस तिरस्कार के फलस्वरूप उनके शरीर में ही आग जल उठी, जिससे क्षण भर में ही वे सब-के-सब जलकर खाक हो गये।

परीक्षित! सगर के लड़के कपिल मुनि के क्रोध से जल गये, ऐसा कहना उचित नहीं है। वे तो शुद्ध सत्त्वगुण के परम आश्रय हैं। उनका शरीर तो जगत् को पवित्र करता रहता है। उनमें भला क्रोधरूप तमोगुण की सम्भावना कैसे की जा सकती है। भला, कहीं पृथ्वी की धूल का भी आकाश से सम्बन्ध होता है?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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