श्रीमद्भागवत महापुराण नवम स्कन्ध अध्याय 23 श्लोक 1-22

नवम स्कन्ध: द्वाविंशोऽध्याय: अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: नवम स्कन्ध: त्रयोविंश अध्यायः श्लोक 1-22 का हिन्दी अनुवाद


अनु, द्रह्यु, तुर्वसु और यदु के वंश का वर्णन

श्रीशुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित! ययातिनन्दन अनु के तीन पुत्र हुए- सभानर, चक्षु और परोक्ष। सभानर के कालनर, कालनर का सृंजय, सृंजय का जनमेजय, जनमेजय का महाशील, महाशील का पुत्र हुआ महामना। महामना के दो पुत्र हुए- उशीनर एवं तितिक्षु। उशीनर के चार पुत्र थे- शिबि, वन, शमी और दक्ष। शिबि के चार पुत्र हुए- बृषादर्भ, सुवीर, मद्र और कैकय। उशीनर के भाई तितिक्षु के रुशद्रथ, रुशद्रथ के हेम, हेम के सुतपा और सुतपा के बलि नामक पुत्र हुआ।

राजा बलि की पत्नी के गर्भ से दीर्घतमा मुनि ने छः पुत्र उत्पन्न किये- अंग, वंग, कलिंग, सुह्म, पुण्ड्र और अन्ध्र। इन लोगों ने अपने-अपने नाम से पूर्व दिशा में छः देश बसाये। अंग का पुत्र हुआ खनपान, खनपान का दिविरथ, दिविरथ का धर्मरथ और धर्मरथ का चित्ररथ। यह चित्ररथ ही रोमपाद के नाम से प्रसिद्ध था। इसके मित्र थे अयोध्यापति महाराज दशरथ। रोमपाद को कोई सन्तान न थी। इसलिये दशरथ ने उन्हें अपनी शान्ता नाम की कन्या गोद दे दी। शान्ता का विवाह ऋष्यश्रृंग मुनि से हुआ। ऋष्यश्रृंग विभाण्डक ऋषि के द्वारा हरिणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे।

एक बार राजा रोमपाद के राज्य में बहुत दिनों तक वर्षा नहीं हुई। तब गणिकाएँ अपने नृत्य, संगीत, वाद्य, हाव-भाव आलिंगन और विविध उपहारों से मोहित करके ऋष्यश्रृंग को वहाँ ले आयीं। उनके आते ही वर्षा हो गयी। उन्होंने ही इन्द्र देवता का यज्ञ कराया, तब सन्तानहीन राजा रोमपाद को भी पुत्र हुआ और पुत्रहीन दशरथ ने भी उन्हीं के प्रयत्न से चार पुत्र प्राप्त किये। रोमपाद का पुत्र हुआ चतुरंग और चतुरंग का पृथुलाक्ष। पृथुलाक्ष के बृहद्रथ, बृहत्कर्मा और बृहद्भानु-तीन पुत्र हुए। बृहद्रथ का पुत्र हुआ बृहन्मना और बृहन्मना का जयद्रथ।

जयद्रथ की पत्नी का नाम था सम्भूति। उसके गर्भ से विजय का जन्म हुआ। विजय का धृति, धृति का धृतव्रत, धृतव्रत का सत्कर्मा, सत्कर्मा का पुत्र था अधिरथ। अधिरथ को कोई सन्तान न थी। किसी दिन वह गंगा तट पर क्रीड़ा कर रहा था कि देखा एक पिटारी में नन्हा-सा शिशु बहा चला जा रहा है। वह बालक कर्ण था, जिसे कुन्ती ने कन्यावस्था में उत्पन्न होने के कारण उस प्रकार बहा दिया था। अधिरथ ने उसी को अपना पुत्र बना लिया।

परीक्षित! राजा कर्ण के पुत्र का नाम था वृषसेन। ययाति के पुत्र द्रह्यु से बभ्रु का जन्म हुआ। बभ्रु का सेतु, सेतु का आरब्ध, आरब्ध का गान्धार, गान्धार का धर्म, धर्म का धृत, धृत का दुर्मना और दुर्मना का पुत्र प्रचेता हुआ। प्रचेता के सौ पुत्र हुए, ये उत्तर दिशा में म्लेच्छों के राजा हुए। ययाति के पुत्र तुर्वसु का वह्नि, वह्नि का भर्ग, भर्ग का भानुमान्, भानुमान् का त्रिभानु, त्रिभानु का उदारबुद्धि करन्धम और करन्धम का पुत्र हुआ मरुत। मरुत सन्तानहीन था। इसलिये उसने पूरुवंशी दुष्यन्त को अपना पुत्र बनाकर रखा था। परन्तु दुष्यन्त राज्य की कामना से अपने ही वंश में लौट गये। परीक्षित! अब मैं राजा ययाति के बड़े पुत्र यदु के वंश का वर्णन करता हूँ।

परीक्षित! महाराज यदु का वंश परम पवित्र और मनुष्यों के समस्त पापों को नष्ट करने वाला है। जो मनुष्य इसका श्रवण करेगा, वह समस्त पापों से मुक्त हो जायेगा। इस वंश में स्वयं भगवान् परब्रह्म श्रीकृष्ण ने मनुष्य के-से रूप में अवतार लिया था। यदु के चार पुत्र थे- सहस्रजित, क्रोष्टा, नल और रिपु। सहस्रजित से शतजित का जन्म हुआ। शतजित के तीन पुत्र थे- महाहय, वेणुहय और हैहय। हैहय का धर्म, धर्म का नेत्र, नेत्र का कुन्ति, कुन्ति का सोहंजि, सोहंजि का महिष्मान और महिष्मान का पुत्र भद्रसेन हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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