श्रीमद्भागवत महापुराण अष्टम स्कन्ध अध्याय 13 श्लोक 1-22

अष्टम स्कन्ध: त्रयोदशोऽध्याय: अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: अष्टम स्कन्ध: त्रयोदश अध्यायः श्लोक 1-22 का हिन्दी अनुवाद


आगामी सात मन्वन्तरों का वर्णन

श्रीशुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित! विवस्वान् के पुत्र यशस्वी श्राद्धदेव ही सातवें (वैवस्वत) मनु हैं। यह वर्तमान मन्वन्तर ही उनका कार्यकाल है। उनकी सन्तान का वर्णन मैं करता हूँ।

वैवस्वत मनु के दस पुत्र हैं- इक्ष्वाकु, नभग, धृष्ट, शर्याति, नरिष्यन्त, नाभाग, दिष्ट, करुष, पृषध्र और वसुमान।

परीक्षित! इस मन्वन्तर में आदित्य, वसु, रुद्र, विश्वेदेव, मरुद्गण, अश्विनीकुमार और ऋभु- ये देवताओं के प्रधान गण हैं और पुरन्दर उनका इन्द्र है। कश्यप, अत्रि, वसिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और भरद्वाज- ये सप्तर्षि हैं। इस मन्वन्तर में भी कश्यप की पत्नी अदिति के गर्भ से आदित्यों के छोटे भाई वामन के रूप में भगवान् विष्णु ने अवतार ग्रहण किया था।

परीक्षित! इस प्रकार मैंने संक्षेप से तुम्हें सात मन्वन्तरों का वर्णन सुनाया; अब भगवान् की शक्ति से युक्त अगले (आने वाले) सात मन्वन्तरों का वर्णन करता हूँ। परीक्षित! यह तो मैं तुम्हें पहले (छठे स्कन्ध में) बता चुका हूँ कि विवस्वान् (भगवान् सूर्य) की दो पत्नियाँ थीं- संज्ञा और छाया। ये दोनों ही विश्वकर्मा की पुत्री थीं। कुछ लोग ऐसा कहते हैं कि उनकी एक तीसरी पत्नी वडवा भी थी। (मेरे विचार से तो संज्ञा का ही नाम वडवा हो गया था।) उन सूर्यपत्नियों में संज्ञा से तीन सन्तानें हुईं- यम, यमी और श्राद्धदेव। छाया के भी तीन सन्तानें हुईं- सावर्णि, शनैश्चर और तपती नाम की कन्या जो संवरण की पत्नी हुई। जब संज्ञा ने वडवा का रूप धारण कर लिया, तब उससे दोनों अश्विनीकुमार हुए।

आठवें मन्वन्तर में सावर्णि मनु होंगे। उनके पुत्र होंगे निर्मोक, विरजस्क आदि। परीक्षित! उस समय सुतपा, विरजा और अमृतप्रभ नामक देवगण होंगे। उन देवताओं के इन्द्र होंगे विरोचन के पुत्र बलि। विष्णु भगवान् ने वामन अवतार ग्रहण करके इन्हीं से तीन पग पृथ्वी माँगी थी; परन्तु इन्होंने उनको सारी त्रिलोकी दे दी। राजा बलि को एक बार तो भगवान् ने बाँध दिया था, परन्तु फिर प्रसन्न होकर उन्होंने इनको स्वर्ग से भी श्रेष्ठ सुतल लोक का राज्य दे दिया। वे इस समय वहीं इन्द्र के समान विराजमान हैं। आगे चलकर ये ही इन्द्र होंगे और समस्त ऐश्वर्यों से परिपूर्ण इन्द्रपद का भी परित्याग करके परमसिद्धि प्राप्त करेंगे।

गालव, दीप्तिमान्, परशुराम, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, ऋष्यश्रृंग और हमारे पिता भगवान् व्यास- ये आठवें मन्वन्तर में सप्तर्षि होंगे। इस समय ये लोग योग बल से अपने-अपने आश्रम मण्डल में स्थित हैं। देवगुह्य की पत्नी सरस्वती के गर्भ से सार्वभौम नामक भगवान् का अवतार होगा। ये ही प्रभु पुरन्दर इन्द्र से स्वर्ग का राज्य छीनकर राजा बलि को दे देंगे।

परीक्षित! वरुण के पुत्र दक्षसावर्णि नवें मनु होंगे। भूतकेतु, दीप्तकेतु आदि उनके पुत्र होंगे। पार, मारीचिगर्भ आदि देवताओं के गण होंगे और अद्भुत नाम के इन्द्र होंगे। उस मन्वन्तर में द्युतिमान् आदि सप्तर्षि होंगे। आयुष्यमान् की पत्नी अम्बुधारा के गर्भ से ऋषभ के रूप में भगवान् का कलावतार होगा। अद्भुत नामक इन्द्र उन्हीं की दी हुई त्रिलोकी का उपभोग करेंगे। दसवें मनु होंगे उपश्लोक के पुत्र ब्रह्मसावर्णि। उनमें समस्त सद्गुण निवास करेंगे। भूरिषेण आदि उनके पुत्र होंगे और हविष्यमान्, सुकृति, सत्य, जय, मूर्ति आदि सप्तर्षि। सुवासन, विरुद्ध आदि देवताओं के गण होंगे और इन्द्र होंगे शम्भु।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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