श्रीमद्भागवत महापुराण द्वितीय स्कन्ध अध्याय 3 श्लोक 1-14

द्वितीय स्कन्ध: तृतीय अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: द्वितीय स्कन्ध: तृतीय अध्यायः श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद


कामनाओं के अनुसार विभिन्न देवताओं की उपासना तथा भगवद्भक्ति के प्राधान्य का निरूपण

श्रीशुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित! तुमने मुझसे जो पूछा था कि मरते समय बुद्धिमान मनुष्य को क्या करना चाहिये, उसका उत्तर मैंने तुम्हें दे दिया। जो ब्रह्मतेज का इच्छुक हो वह बृहस्पति की; जिसे इन्द्रियों की विशेष शक्ति की कामना हो वह इन्द्र की और जिसे सन्तान की लालसा हो वह प्रजापतियों की उपासना करे। जिसे लक्ष्मी चाहिये वह मायादेवी की, जिसे तेज चाहिये वह अग्नि की, जिसे धन चाहिये वह वसुओं की और जिस प्रभावशाली पुरुष को वीरता की चाह हो, उसे रुद्रों की उपासना करनी चाहिये। जिसे बहुत अन्न प्राप्त करने की इच्छा हो, वह अदिति का; जिसे स्वर्ग की कामना हो वह अदिति के पुत्र देवताओं का, जिसे राज्य की अभिलाषा हो वह विश्वदेवों का और जो प्रजा को अपने अनुकूल बनाने की इच्छा रखता हो उसे साध्य देवताओं का आराधन करना चाहिये।

आयु की इच्छा से अश्विनीकुमारों का, पुष्टि की इच्छा से पृथ्वी का और प्रतिष्ठा की चाह हो तो लोक-माता पृथ्वी और द्यौ (आकाश) का सेवन करना चाहिये। सौन्दर्य की चाह से गन्धर्वों की, पत्नी की प्राप्ति के लिये उर्वशी अप्सरा की और सबका स्वामी बनने के लिये ब्रह्मा की आराधना करनी चाहिये। जिसे यश की इच्छा हो वह यज्ञ पुरुष की, जिसे खजाने की लालसा हो वह वरुण की; विद्या प्राप्त करने की आकांक्षा हो तो भगवान शंकर की और पति-पत्नी में परस्पर प्रेम बनाये रखने के लिये पार्वती जी की उपासना करनी चाहिये। धर्म-उपार्जन करने के लिये विष्णु भगवान की, वंशपरम्परा की रक्षा के लिये पितरों की, बाधाओं से बचने के लिये यक्षों की और बलवान् होने के लिये मरुद्गणों की आराधना करनी चाहिये।

राज्य के लिये मन्वन्तरों के अधिपति देवों को, अभिचार के लिये निर्ऋति को, भोगों के लिये चन्द्रमा को और निष्कामता प्राप्त करने के लिये परम पुरुष नारायण को भजना चाहिये। और जो बुद्धिमान पुरुष हैं-वह चाहे निष्काम हो, समस्त कामनाओं से युक्त हो अथवा मोक्ष चाहता हो-उसे तीव्र भक्ति योग के द्वारा केवल पुरुषोत्तम भगवान की ही आराधना करनी चाहिये। जितने भी उपासक हैं, उनका सबसे बड़ा हित इसी में है कि वे भगवान के प्रेमी भक्तों का संग करके भगवान में अविचल प्रेम प्राप्त कर लें। ऐसे पुरुषों के सत्संग में जो भगवान की लीला-कथाएँ होती हैं, उनसे उस दुर्लभ ज्ञान की प्राप्ति होती है जिससे संसार-सागर की त्रिगुणमयी तरंगमालाओं के थपेड़े शान्त हो जाते हैं, इन्द्रियों के विषयों में आसक्ति नहीं रहती, कैवल्य मोक्ष का सर्वसम्मत मार्ग भक्ति योग प्राप्त हो जाता है। भगवान की ऐसी रसमयी कथाओं का चस्का लग जाने पर भला कौन ऐसा है, जो उनमें प्रेम न करे।

शौनक जी ने कहा- सूत जी! राजा परीक्षित ने शुकदेव जी की यह बात सुनकर उनसे और क्या पूछा? वे तो सर्वज्ञ होने के साथ-ही-साथ मधुर वर्णन करने में भी बड़े निपुण थे।

सूत जी! आप तो सब कुछ जानते हैं, हम लोग उनकी वह बातचीत बड़े प्रेम से सुनना चाहते हैं, आप कृपा करके अवश्य सुनाइये। क्योंकि संतों की सभा में ऐसी ही बातें होतीं हैं जिनका पर्यवसान भगवान की रसमयी लीला-कथा में ही होता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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