श्रीमद्भागवत महापुराण नवम स्कन्ध अध्याय 3 श्लोक 1-16

नवम स्कन्ध: तृतीयोऽध्याय: अध्याय

Prev.png

श्रीमद्भागवत महापुराण: नवम स्कन्ध: तृतीय अध्यायः श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद


महर्षि च्यवन और सुकन्या का चरित्र, राजा शर्याति का वंश

श्रीशुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित! मनुपुत्र राजा शर्याति वेदों का निष्ठावान् विद्वान् था। उसने अंगिरा गोत्र के ऋषियों के यज्ञ में दूसरे दिन का कर्म बतलाया था। उसकी एक कमललोचना कन्या थी। उसका नाम था सुकन्या।

एक दिन राजा शर्याति अपनी कन्या के साथ वन में घूमते-घूमते च्यवन ऋषि के आश्रम पर जा पहुँचे। सुकन्या अपनी सखियों के साथ वन में घूम-घूमकर वृक्षों का सौन्दर्य देख रही थी। उसने एक स्थान पर देखा कि बाँबी (दीमकों की एकत्रित की हुई मिट्टी) के छेद में से जुगनू की तरह दो ज्योतियाँ दीख रहीं हैं। दैव की कुछ ऐसी ही प्रेरणा थी, सुकन्या ने बाल सुलभ चपलता से एक काँटे के द्वारा उन ज्योतियों को बेध दिया। इससे उनमें से बहुत-सा खून बह चला। उसी समय राजा शर्याति के सैनिकों का मल-मूत्र रुक गया। राजर्षि शर्याति को यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ, उन्होंने अपने सैनिकों से कहा- ‘अरे, तुम लोगों ने कहीं महर्षि च्यवन जी के प्रति कोई अनुचित व्यवहार तो नहीं कर दिया? मुझे तो यह स्पष्ट जान पड़ता है कि हम लोगों में से किसी-न-किसी ने उनके आश्रम में कोई अनर्थ किया है।'

तब सुकन्या ने अपने पिता से डरते-डरते कहा कि ‘पिता जी! मैंने कुछ अपराध अवश्य किया है। मैंने अनजान में दो ज्योतियों को काँटे से छेद दिया है’। अपनी कन्या की यह बात सुनकर शर्याति घबरा गये। उन्होंने धीरे-धीरे स्तुति करके बाँबी में छिपे हुए च्यवन मुनि को प्रसन्न किया। तदनन्तर च्यवन मुनि का अभिप्राय जानकर उन्होंने अपनी कन्या उन्हें समर्पित कर दी और इस संकट से छूटकर बड़ी सावधानी से उनकी अनुमति लेकर वे अपनी राजधानी में चले आये। इधर सुकन्या परमक्रोधी च्यवन मुनि को अपने पति के रूप में प्राप्त करके बड़ी सावधानी से उनकी सेवा करती हुई उन्हें प्रसन्न करने लगी। वह उनकी मनोवृत्ति को जानकर उसके अनुसार ही बर्ताव करती थी।

कुछ समय बीत जाने पर उनके आश्रम पर दोनों अश्विनीकुमार आये। च्यवन मुनि ने उनका यथोचित सत्कार किया और कहा कि ‘आप दोनों समर्थ हैं, इसलिये मुझे युवा-अवस्था प्रदान कीजिये। मेरा रूप एवं अवस्था ऐसी कर दीजिये, जिसे युवती स्त्रियाँ चाहती हैं। मैं जानता हूँ कि आप लोग सोमपान के अधिकारी नहीं हैं, फिर भी मैं आपको यज्ञ में सोमरस का भाग दूँगा’।

वैद्यशिरोमणि अश्विनीकुमारों ने महर्षि च्यवन का अभिनन्दन करके कहा, ‘ठीक है।’ और इसके बाद उनसे कहा कि ‘यह सिद्धों के द्वारा बनाया हुआ कुण्ड है, आप इसमें स्नान कीजिये’। च्यवन मुनि के शरीर को बुढ़ापे ने घेर रखा था। सब ओर नसें दीख रही थीं, झुर्रियाँ पड़ जाने एवं बाल पक जाने के कारण वे देखने में बहुत भद्दे लगते थे। अश्विनीकुमारों ने उन्हें अपने साथ लेकर कुण्ड में प्रवेश किया। उसी समय कुण्ड से तीन पुरुष बाहर निकले। वे तीनों ही कमलों की माला, कुण्डल और सुन्दर वस्त्र पहने एक-से मालूम होते थे। वे बड़े ही सुन्दर एवं स्त्रियों को प्रिय लगने वाले थे। परमसाध्वी सुन्दरी सुकन्या ने जब देखा कि ये तीनों ही एक आकृति के तथा सूर्य के समान तेजस्वी हैं, तब अपने पति को न पहचानकर उसने अश्विनीकुमारों की शरण ली।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः