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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग गौड़ [9] (ब्राम्हण-पत्नियाँ कह रही ह-) ‘कन्हैया! तुम मक्खन खाओ और हम (तुम्हारी) वह छटा देखें। हम (सब) ताजा दही, तुरंत का औटा हुआ दूध लायी हैं, तुम खाओ और (तुम्हें खाते देखकर) हम अपना जन्म सफल मानें।’ (यह सुनकर) श्यामसुन्दर ने सब सखाओं को बुलाकर मण्डल- (गोलाकार— ) में बैठा दिया और वन के पत्तों के दोने लगा (बाँट) दिये। व्रज नारियाँ (उनमें) दही परोसकर दे रही हैं और कन्हैया गोप कुमारों के साथ बैठे अत्यन्त रूचि पूर्वक भोजन कर रहे हैं। अतः वह दही धन्य है, वह मक्खन धन्य है, वे गोपियाँ (विप्र-पत्नियाँ) धन्य हैं और वे श्रीराधा धन्य हैं, जिनके वश में श्रीमुरारि हैं। व्रज की नारियाँ श्रीकृष्णचन्द्र के साथ आनन्द मना रही हैं, सूरदासजी के स्वामी का यह चरित देखकर देववृन्द मोहित हो रहे हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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