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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सारंग [201] सूरदासजी के शब्दों में एक गोपी कह रही ह-(सखी! हमारे) नेत्र (श्याम के पास) जाकर अधिकारी बन गये हैं। सखी! तुमने यह बात नहीं सुनी? (हमारा) मन आया था, वही यह रहस्य बता गया है। जब कभी वह (मन) मेरे पास आता है, तब-तब आकर यही कहता ह-नेत्रों को हमने (ही तो) ले जाकर (मोहन से) मिलाया और हमारे देखते-देखते वे श्यामसुन्दर के रूप में लीन हो गये (हमें भी उन्होंने नहीं पूछा) । यह बात कहकर अब वह भी पश्चात्ताप करता है, उसके लिये भी वे (नेत्र) विपत्ति स्वरुप बन गये हैं; (अतः मन ने) अपने किये का फल तुरंत पा लिया, ऐसी अधमता मन ने (ही) की थी। अब इन्द्रिय और मन नेत्रों के पीछे (चलने वाले) हो गये, उन्होंने कन्हैया को (इस प्रकार) वश में कर लिया है। इन नेत्रों की महिमा क्या कहूँ, कुछ कही नहीं जाती। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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