विषय सूची
अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिहागरौ [209] (कोई गोपी कह रही ह-सखी!) श्यामसुन्दर ने (मेरे) चोर नेत्रों को बाँध लिया, (उनके) जाते ही अपनी घुँघराली अलकों की रस्सियों से बाँधकर (उन्होंने) तुरंत पकड़ लिया! ये (तो उनके) मनोहर कपोलों की अपार मूल्यवान् कान्ति पर ललचाये हुए (उसे लेना चाहते) थे, परंतु दूसरे-दूसरे अंगों की शोभा रूपी लोग जाग गये (और ये पकड़े गये); अब इनका छुटकारा नहीं। जो (इन्द्रिय) साथ गये थे, वे (भी) सब श्यामसुन्दर के अनुपम अंगों की शोभा में उलझकर रुक गये; उस सौन्दर्य के कूप में पड़े हुए वे एक-दूसरे की दशा नहीं जानते। जो जहाँ था, उसे वहीं पटक दिया, किसी को (अपने) शरीर की तनिक भी सुधि नहीं रही। सूरदासजी कहते ह-(गोपियाँ) यही कहकर पश्चात्ताप करती हैं कि ये गुरुजनों – (बड़-) का भय तो मानते। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पद | पद संख्या |