विषय सूची
अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सारंग[270] सूरदासजी के शब्दों में एक गोपी कह रही ह-(सखी!) इसी से (तो उनका) घनश्याम नाम पड़ा है; (क्योंकि) इनसे निष्ठुर और कोई नहीं है; (इसीलिये) कवि भी (इनकी यह) उपमा गाते हैं। (देखो,) चातक का सदा (पिउ-पिउ) रटने से प्रेम है। वह ऋतु (वर्षा) – में तथा अनऋतु (बिना वर्षा— बेमौसिम) भी (रटने से) हारता (थकता) नहीं, (अपनी) जीभ तालू से नहीं लगाता, ‘पीव! पीव!’ (प्रियतम! प्रियतम!) ही पुकारता रहता है। वे (मेघ) पहाड़ों पर, वनों में, पृथ्वी पर, नदियों में, कुँओं में, सरोवरों में वर्षा करते हैं; पर जैसे चातक के मुख में कहीं एक बूँद भी नहीं लगती (पहुँचती), वैसे ही ये घनश्याम हमारे निरन्तर रट लगाने पर भी हमारी उपेक्षा ही करते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पद | पद संख्या |