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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग मारू [132] श्यामसुन्दर की कान्तिरूपी उत्तम जल में व्रजनारियाँ स्नान करती हैं। (मोहन के उर की) कमलों की माला (ही मानो) नदी है, (उनकी) अत्यन्त बलवान् भुजाएँ तट हैं और (सुन्दर) रोमावली यमुना की धारा है। (उस पर) नेत्र टिकते नहीं, (वह) अत्यन्त वेग से बह रही है; वहाँ पहुँचने पर चित्त धैर्य नहीं रख पाता। मन तो वहाँ (उस छबि में) पहुँच (ही) गया, स्वयं (गोपियाँ भी उस) जल के पास खड़ी हैं, (श्याम के) एक-एक अंग की शोभा को देखकर वे (अपनी) सुधि भुला देती हैं। प्रेम रूपी डुबकी लगाकर सब उस – (छट-) में स्नान करती हैं और जब चित्त में समझ (सावधानी) आती है, तब भागकर किनारे आ जाती हैं। सूरदासजी कहते ह-मेरे स्वामी श्यामसुन्दर की जल (कान्ति) – राशि का व्रज की स्त्रियाँ अनुमान करती हैं (कि वह कितनी है), किंतु (उसका) पार नहीं पातीं! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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