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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सूही [197] सूरदासजी के शब्दों में पहली गोपी कहती ह-(सखी!) अपने नेत्रों का अब मैं विश्वास नहीं करूँगी। हाय, हाय तुम उनको फिर से बुला रही हो, उनका (तो) नाम (भी) नहीं लेना चाहिये। अब मैं उन्हें फिर बसा लूँ? (अब) मेरे (पास तो) उनके लिये स्थान ही नहीं है। मैं (तो) इसी प्रकार व्याकुल हुई घूमती रहूँगी; (किंतु) वे जहाँ रहते हैं, वहाँ नहीं जाऊँगी। खिला-पिलाकर जब (उन्हें) बड़ा कर दिया, (तो) अब वे दूसरे ही गाँव (दूसरे के पास) जा बसे। वे अपने किये का फल पायेंगे, मैं उनके लिये क्यों पश्चात्ताप करूँ? इन्होंने जैसा हमारा उपकार माना, वह क्या कहूँ और किसको वर्णन करके सुनाऊँ। (अब तो मैं) इनके बिना ही रहूँगी, (वे मुझ पर) अब कृपा ही करें, मैं उनको नमस्कार करती हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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