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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग जैतश्री [128] सूरदासजी के शब्दों में सखियाँ उस (पूर्व कथित) सखी को ‘धन्य’ कहती हैं। (वे कहती ह-) इन – (श्रीराधा-कृष्ण-) को हमने इस रूप में नहीं जाना था। व्रज के भीतर ये गुप्त रहते हैं (अपना अभेद प्रकट नहीं करते) । तेरे सच्चे विचार धन्य हैं, धन्य हैं। हम तो इनको कुछ और ही कहती थीं। (जब) राधा और कृष्ण दोनों एक हैं, (तब) इतना उपहास (लोक निन्दा क्यों) सहते हैं। वे दोनों तो एक हैं ही, दूसरी (उनकी प्रिय) तू है, सखी! श्याम तुझे भी (तो) प्यार करते हैं। श्यामसुन्दर धन्य हैं, श्रीराधा धन्य हैं और तू भी धन्य है; हम व्यर्थ ही भटकती (मिथ्या धारणा करती) हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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