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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग अड़ानौ [139] सूरदासजी के शब्दों में एक गोपी कह रही है— अरी! श्यामसुन्दर व्रज की गली में ही खड़े थे, उन्होंने (खड़े-खड़े ही) मुझे मोहित कर लिया, (निश्चय ही मुझे) मोहित कर लिया। सखी! जब से श्यामसुन्दर को देखा है, (तब से) कामदेव ने मेरे साथ ऐसा बैर ठाना है कि (उसके मारे) मैं चल नहीं पाती। (मुझे वहाँ से घर) कौन ले आयी? किसने मेरे पैरों में गति दी? और जिसने मेरा हाथ पकड़ा, वह न जाने कौन थी? स्वामी – (श्रीकृष्ण-) को देखकर मैं सुधि एवं समझ रहित विदेह (संज्ञाहीन) हो गयी, इसलिये तुझसे पूछती हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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