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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग मारू [83] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-सखी! मैंने भली प्रकार श्याम को नहीं देखा। उनके देखते ही नेत्र (प्रेमाश्रुओं से) भर आये, इससे वे बार-बार पछता रहे हैं। किसी प्रकार प्रयत्न करके इन्हें अपलक रखती हूँ, किंतु वे तनिक देर में व्याकुल हो जाते हैं। मानो पलकें (मोहन की) शोभा की रक्षक (पहरेदार) हों, इसीलिये वे (नेत्र) अत्यन्त डरते हैं। क्या करूँ, इन (नेत्रों) – का क्या दोष; इन्होंने तो अपनी वाली (अपने स्वभाव के अनुसार ही चेष्टा ही चेष्टा) की। मन श्याम की शोभा में उलझ गया है, उसी ने (उस) शोभा का पूरा आनन्द लिया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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