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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सारंग [5] (एक विप्र-पत्नी कह रही ह-) ‘प्रियतम! (मुझे) रोको मत, (श्रीकृष्ण के पास) जाने दो। श्रीहरि के वियोग- (की ज्वाल-) में जलती हुई मैं (तुमसे यह) याचना कर (भीख माँग) रही हूँ; इतनी बात मुझे दान- (में) दे दो। मैं (मोहन के) वचन सुनूँ और (उन्हें) वन में क्रीड़ा करते देखूँ। इस आनन्द से (अपने) ह्रदय को शीतल कर लेने दो; मैं शपथपूर्वक सच कहती ह-पीछे जो तुम्हें अच्छा लगे, वह करना। यदि (समझते हो कि) मैं कुछ छल करके (मन में कोई कपट या छिपाव रखकर तुमसे यह) याचना करती हूँ तो कान देकर (ध्यान से) यह बात सुनो।’ सूरदासजी के शब्दों में ऋषि पत्नी कहती ह-‘मन, वचन, कर्म से प्राण देकर (भी मैं श्यामसुन्दर से मिलने का) अपना प्रण रखूँगी।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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