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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग ललित[284] सूरदासजी के शब्दों में एक गोपी कह रही ह-(सखी! मेरे) नेत्र घूँघट में समाते (रुकते) नहीं। नन्दनन्दन का सुन्दर मुख देखते-देखते वे तृप्त ही नहीं होते। ये रस के अत्यन्त लोभी, (मोहन की मुख-) मधुरिमा के महान् लम्पट, एक भी बात समझते नहीं। क्या कहूँ, उनके दर्शन के आनन्द से ये मत्त हो गये हैं, ओट में होते ही व्याकुल होने लगते हैं। मैं बार-बार रोककर हार गयी, फिर भी इनका स्वभाव छूटता नहीं; तनिक-सा (ही सही,) गिरिधरलाल को देखे बिना (इनका) एक पल कल्प के समान बीतता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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