विषय सूची
अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग धनाश्री [59} (एक गोपी कह रह रही ह-सखी!) यह ठीक है कि तुम भले के लिये कहती हो, यह (तुमने) मुझे अच्छा स्मरण दिलाया, शरीर का स्मरण भूलकर मैं बहुत भटकी। जबसे श्यामसुन्दर ने मुझसे दधि का दान लिया और हँस-हँसकर कुछ बातें कीं, तबसे किसका घर, किसके पिता-माता और किसे अपने शरीर का स्मरण रहा? अब तुम्हारी बात कुछ समझ रही हूँ कि (मैं) दही और मही (मट्ठा) लेकर (बेचने) आयी हूँ। सूरदासजी कहते हैं कि वह गोपी बार-बार यह कहकर कि ‘(सुनो, मैं) सबेरे की आयी हुई हूँ’ (अपने) चित्त में लज्जित हो गयी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पद | पद संख्या |