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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग रामकली[342] सूरदासजी के शब्दों में एक गोपी कह रही ह-(सखी! मेरे) आँखों को श्यामसुन्दर ने अपना बना लिया है; जैसे ही उन्होंने (इनको) मुँह लगाया, वैसे ही ये भी अनुकूल होती गयीं। (अन्त में) श्याम ने इन्हें अपने वश में कर लिया, (इसलिये) ये हमसे दूर पड़ गयीं (वियुक्त हो गयीं) । रात-दिन धूप तथा छाया में खड़ी ये एकटक (मोहन को देखती) रहती हैं। ये लोक-लाज की उपेक्षा करके निकल गयीं (चली गयीं), किसी से (भी) डरी नहीं। ये (आँखें) अत्यन्त चतुर एवं महान् नागरी हैं, (अतः) चतुर नागर – (श्यामसुन्दर-) ने (इनका) हरण कर लिया। (अब) ये छाया के समान उनके साथ-ही-साथ घूमती रहती हैं और कहीं हटती नहीं और जब हम इन्हें दृढ़तापूर्वक रोकती हैं, तब ये हमसे बहुत झगड़ती हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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