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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग जैतश्री[344] सूरदासजी के शब्दों में एक गोपी कह रही ह-(सखी!) ये (मेरी) महान् भाग्यशालिनी आँखें धन्य हैं, धन्य हैं, जिनके बिना श्याम तनिक भी नहीं रहते और जिन्हें उन्होंने सुहागिनी बना दिया है। जिनको (मोहन) अपने शरीर पर से (कभी) हटाते नहीं, जो रात-दिन उनका दर्शन पाती हैं और जो श्यामसुन्दर के चित्त को प्रिय लगती हैं, बताओ तो, उनकी समानता कोई कैसे कर सकता है। (किंतु) हमसे (हमारे कारण) ही तो ये उजागर (प्रसिद्ध) हुईं और अब हमीं पर रुष्ट रहती हैं। श्यामसुन्दर इनके अत्यन्त वश में हो गये हैं, वे क्योंकर इन पर लुब्ध रहते हैं (कुछ कहा नहीं जा सकता) । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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