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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिहागरौ[275] सूरदासजी की शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-सखी! (हमारे) नेत्र (हमारे पास से) भाग गये हैं; (भला,) छप्पर से गिरता पानी कैसे बँड़ेरी – (छप्पर के ऊँचे भाग-) की ओर दौड़कर लौटेगा। जैसे जलते हुए घर को छोड़ दिया जाता है, उसी प्रकार (ये) व्याकुल होकर निकल पड़े; (किंतु) ऐसे (नेत्र) भी अपने नहीं रहे। जैसे मार्ग चलते राही ने आकर (कुछ देर के लिये) डेरा लगा लिया हो, ऐसी अवस्था इन – (नेत्र-) की हो गयी है। वहाँ (श्यामसुन्दर के पास) जाकर (ही) इन्होंने सुख पाया है, (इसलिये) स्वामी – (श्रीकृष्ण-) से ये नेत्र डंके की चोट (सबके सामने प्रकट रूप में) मिल गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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