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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग कल्यान[176] सूरदासजी के शब्दों में एक गोपी कह रही ह-सखी! (ये मेरे) नेत्र श्याम के ही वश हो गये, अब मैं क्या करूँ? जहाँ वे चलते हैं, वहीं (ये) स्वयं दौड़ जाते हैं। (श्याम ने) मुसकराहट का मूल्य देकर इन्हें मोल ले लिया और प्रत्यक्ष दास बना लिया है; जो-जो वे कहते हैं, वही ये करते तथा सदा (उन्हीं के) पास रहते हैं। अब (इतने पर) भी श्यामसुन्दर उनका विश्वास नहीं करते। (उन्होंने) अपनी अलकों की रस्सी से (इन्हें इसलिये) बाँध रखा है कि कभी भाग न जायँ। मन ने इन – (नेत्र-) को लेकर उन्हें दे दिया, (तब से) ये सदा उनके साथ ही रहते हैं। श्यामसुन्दर तो सौन्दर्य राशि हैं, (अतः) ये उनकी शोभा पर ही रीझ गये हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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