विषय सूची
अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सोरठ[299] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-(सखी!) जिसका जैसा स्वभाव बन जाता है, (अथवा) जिसने जो भी हठ पकड़ रखा है, वह (तो) उसके प्राण जाने (मृत्यु) – के पीछे (ही) छूटता ह-ठीक उसी प्रकार जैसे चोर चोरी नहीं छोड़ता, रोकने पर भी वही काम करता है, भले प्राण चला जाय? तथा हानि भी उठाता है। (इसी प्रकार यह नेत्रों का हठ है, मैं तो उन्हें समझाने के लिये) बकते-बकते (डाँटते-डाँटते) तंग आ गयी। यद्यपि व्याध प्रकट रूप में (सबके सामने) हिरन को मारता है, फिर भी हिरनी खड़ी रहती है; (इतना ही नहीं,) वह भी नाद से मोहित होकर प्राण दे डालती है, मन में (व्याध के प्रति) शंका नहीं करती। यद्यपि मैं (इन्हें) बार-बार समझाती हूँ, यही (दृष्टान्त) बार-बार सुनाकर झगड़ती हूँ, फिर भी ये (नेत्र) दर्शन में एकटक रहते हुए (एक) घड़-पल भर के लिये श्याम के दर्शन से हटते नहीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पद | पद संख्या |