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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग आसावरी[53] सूरदासजी के शब्दों में एक गोपी कह रही है— (सखी!) मेरा मन श्रीनन्दलाल में अनुरक्त हो गया है, (अब मेरा) कोई क्या कर लेगा! मैं तो उनके चरणकमलों में लिपट गयी हूँ, (अब) जो विधाता को अच्छा लगे, वह हो। घर में पति और माँ-बाप मुझे डाँटते हैं, यहाँ तक कि रास्ते चलते लोग भी मेरी हँसी उड़ाते हैं; (किंतु) अब तो मन में यही ठान लिया है (क्या करूँ) ब्रम्हा ने ही यह संयोग रच दिया है। चाहे मेरा यह लोक बिगड़ जाय और परलोक भी नष्ट हो जाय, फिर भी मैं नन्दकुमार को छोड़ूँगी नहीं, उनसे निशान बजाकर (डंके की चोट) मिलूँगी। इस शरीर से प्रियतम रूप में श्रीकृष्ण को फिर मिलने से रहे। मैं स्वामी के ऊपर अपना सब कुछ निछावर कर दूँगी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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