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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग देवसाख[136] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-सखी! श्याम के बिना मेरा मन रहता नहीं, वे अत्यन्त चतुर और सबकी दशा जानने वाले, सुजान-शिरोमणि हैं, उनकी उस शोभा में मैं लीन हो गयी हूँ। उन्होंने मेरा मन तो पहले ही चुरा लिया, (अब) मैं सूख-सूखकर काँटा हो रही हूँ। अपनी अवस्था मैं किससे कहूँ, रात-दिन वन-वन घूमती रहती हूँ। वे तो मोहन (ही) ठहरे, अनायास (सबका) मन हर लेते हैं और हरकर उसे मेंहदी – (के समान पीसकर लाल-अनुरागमय) बना देते हैं। वे स्वामी जिनका नाम ही बहुनायक (बहुतों से प्रेम करने वाला) है, रसिक हैं, रसमय हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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