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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सोरठ [124] सूरदासजी के शब्दों में श्रीराधा कह रही ह-(सखी!) कुँवर कन्हैया ने मेरा चित्त चुरा लिया। सखी! मैं क्या करूँ, तभी से मैं पगली हो गयी हूँ। वह (उनकी) घुँघराली अलकों में उलझ गया है, (अतएव) अब पृथक् नहीं किया जा सकता। (वे) कटाक्ष पूर्वक अपने नेत्रों से देखने की मनोहर भंगी मेरे शरीर – (ह्रदय-) में बसा गये। अतः मैं कुल के संकोच को खोकर निर्लज्ज हो गयी; पता नहीं कौन-सा जादू (उन्होंने) डाल दिया। मैं बार-बार तुझसे (अपनी दशा) कहती हूँ; किंतु तेरे चित्त में (मेरी बात) लगती नहीं। (तू) अपनी-जैसी (अच्छी) बुद्धि मेरी भी समझती है, (पर) उतनी (बुद्धि) मैंने कहाँ पायी है। श्यामसुन्दर ने (मेरे) शरीर की सुधि भुलवाकर मेरी ऐसी दशा कर दी है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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