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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग कान्हरौ [166] सूरदासजी के शब्दों में एक गोपी कह रही ह-(सखी!) हमसे तो (मन-इन्द्रिय) गये ही, (अब क्या वे) उन – (मोहन-) के संग का अधिकार भी खो दें। वहाँ से (तो) (श्यामसुन्दर) हमारी ओर इन्हें खदेड़ दें और हम इनकी ओर देखें (भी) नहीं। जैसी दशा इन्होंने हमारी की है, वैसे ही हम भी (क्या) इनकी दुर्दशा करें? (वे) सब (मन आदि क्या) दरवाजे-दरवाजे भटकते-रोते फिरें और हम (उन्हें) देखें। आओ, सखियो! यही निश्चय कर लिया जाय कि वे भले निश्चिन्त होकर सुख पूर्वक विश्राम करें; (परंतु जब) वे उन श्यामसुन्दर से जा मिले। (उनके रंग में रँगकर काले हो गये, तब) उन्हें हम कैसे धोयें (स्वच्छ करें) । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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