विषय सूची
अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिलावल[7] (एक विप्र-पत्नी कह रही ह-प्रियतम!) श्रीहरि से मिलने के लिये जाती हुई मुझको (तुमने) क्यों घेर (रोक) रखा है? (मैं) उन श्रीपति का दर्शन कर आऊँ, मुझे जाने दो; (मैं) तुम्हारी दासी बनती हूँ। (तुम्हारे) पैरों पड़ती हूँ, बार-बार तुमसे प्रार्थना करती हूँ, अब (मेरा) अंचल छोड़ दो। (हाय!) पूर्व जन्म का (मेरा) कर्म ही प्रतिकूल हो गया है, जिससे प्रिय पति ही (मेरे) पैर की बेड़ी बन गया है। (अच्छा,) स्वामी! जिसे तुम अपना कहते हो, वह शरीर यह लो और उसे अपने सिर पर दे मारो। सूरदासजी कहते हैं कि वह (विप्र-पत्नी यह कहती हुई देह त्यागकर) सब सखियों से आगे ही चली गयी और उसने श्रीहरि के मुख का दर्शन (सबसे प्रथम) किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पद | पद संख्या |