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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सोरठी[329] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-(सखी!) ये (मेरे) नेत्र बाजीगर का बट्टा (गोला) हो गये हैं। पलकों के भवन में (तो ये) रहते नहीं; अतः देखती हूँ कि फिर ये कहाँ जाते हैं। बहुरुपिये के समान ये इस क्षण में और, और दूसरे क्षण दूसरे (नित्य नवीन प्रेम वाले) बने रहते हैं तथा हमारी अपेक्षा भी वेग से दौड़कर इस प्रकार जाते हैं कि रोकने से रुकते नहीं। जाते तो इन्हें देर नहीं लगी; पर जो गये सो चले ही गये, अब (इतनी देर में) लौटे हैं। ये श्यामसुन्दर की (वह) सुन्दरता (लेना) चाहते हैं, जिसका कोई वारापार (आदि-अन्त) नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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