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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग गुंडमलार [211] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-(सखी! मोहन के) दर्शन रूपी कपट के दाने – (भोजन-) के लिये मेरे नेत्र पक्षी (बन गये) हैं। उन्हें देखना ही (दाने) चुगना है, (अतः) ये तुरंत स्वयं उड़कर उनसे जा मिले और अभिमन्त्रित चारा इनके पेट में पड़ गया। (मानो) उनका सुन्दर मुख देखकर (इनके) सिर (पर) मोहिनी पड़ गयी, (अब ये उन्हें) एकटक देखते हैं, डरते नहीं। (यदि) कभी लज्जा और कुल की मर्यादा रूपी वन में लौटकर आते (भी) हैं तो तनिक (देर) भी (यहाँ) रहते नहीं, वहीं चले जाते हैं। मन्द मुसकराहट रूपी व्याध ने मधुर वाणी रूपी मन्त्र पढ़ दिया है, (अतः) वह ध्वनि कानों से सुनते हैं, (फिर) इधर कौन आये। (वे तो) हमारे स्वामी की शोभा (रूपी) भवन में ही रहते हैं, घर (रूपी) वन का नाम (तो) मन से (भी) विस्मृत कर देते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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