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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सारंग[260] सूरदासजी के शब्दों में एक गोपी कह रही ह-(सखी! मेरे) नेत्र (श्यामसुन्दर की) अत्यन्त दुर्गम शोभा में उलझ गये हैं, वे उनकी टेढ़ी कमर, हाथ में (ली हुई) टेढ़ी मुरली और (सिर पर) टेढ़ी पाग तथा (उस पर बँधी मोतियों की) लड़ी में लटक रहे हैं। (वे उनके) रूप, रस, (माधुर्य) और सौन्दर्य पर (ऐसे) रीझ गये हैं कि ह्रदय द्वारा लौटाये जाने पर भी (वे) लौटते नहीं; उन कमल-दल-लोचन के वचन – (आदेश-) का पालन करते (उन) लाल के आनन्द में ही उलझे हैं। (वे तो अपने) सखाओं के बीच में मन्द-मन्द मुसकराते रहते हैं, किसी के द्वारा रोके रुकते नहीं; उन्हीं नटनागर स्वामी के रूप एवं गुणों पर ये (नेत्र) लुब्ध हो गये हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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