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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग गौरी [47] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही है— (सखी!) अब तो (यह बात) प्रकट हो गयी और सारे संसार ने जान ली, उस मोहन के साथ मेरा निरन्तर (अखण्ड) प्रेम अब कैसे छिपा रह सकता है? क्या करूँ? वह (श्यामसुन्दर की) सुन्दर मूर्ति इन नेत्रों में समा गयी है। (मैं) बहुत प्रयत्न करके थक गयी; पर (वह) निकलती (ही) नहीं, रोम-रोम में उलझ गयी है। अब (भला, वह) कैसे पृथक् की जा सकती है, (जबकि) वह दूध में पानी के समान मिल गयी है। स्वामी (श्रीकृष्ण) अन्तर्यामी हैं, उन्होंने मेरे ह्रदय का भीतरी भाव जान लिया है। [48] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही है— (सखी!) कोई मेरा क्या करेगा, (चाहे) संसार (मेरी) बहुत अधिक हँसी (क्यों न) उड़ावे; (किंतु) मैं अपने पातिव्रत से हटूँगी नहीं। कोई भले (मुझे देखकर) मुख पीछे घुमा ले, कोई भले मुझे सुनाकर पुकारे नहीं (मुझसे बात न करे, किंतु) मैं चतुर बुद्धि (की) हूँ, कच्ची (मूर्ख) नहीं कि श्रीहरि को छोड़कर संसार में घूमती फिरूँ। अब तो चित्त में यह निश्चय हो गया है कि श्यामसुन्दर के धाम- (नन्दालय— ) में ही निवास करूँ; (क्योंकि) (मेरा) मन (उन श्यामसुन्दर से) मिलकर (उनके ही श्याम) रंग में रँग गया है, अब वह (ऊख की तरह) पेरे (कष्ट दिये) जाने पर भी श्वेत अथवा लाल (सत्व-रज रूप) होने का नहीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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