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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिहागरौ [199] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-(सखी!) ये मेरे नेत्र यहाँ आकर क्या पायेंगे? वे (तो वहाँ मोहन के) कपोलों पर पड़ती हुई कुण्डलों की कान्ति पर रीझ गये हैं, अतः श्यामसुन्दर के भेजने पर भी (वे यहाँ) नहीं आयेंगे। जिन्होंने अमृत से भरा पूर्ण घड़ा पा लिया है और प्रत्येक क्षण उसे पीकर परितृप्त होते रहते हैं, वे लौटकर तुमसे रूचि मानेंगे (प्रेम करेंगे)? यह तो तुम आश्चर्य की बात कहती हो। वे रस के लालची बने रहते हैं, यह व्रज के सभी घरों में चर्चा है; हमको भी (वे) दोष लगाते हैं; (लोग कहते हैं— ) ये भी पगली हो गयी हैं! इन्द्रियों तथा मन से मिलकर (श्यामसुन्दर के सांनिध्य का) सुख तो ये लूटते हैं और तीनों लोकों में नाम हमारा (बदनाम) होता है, (तुम) यह क्यों विचार नहीं करते हो कि कहाँ श्यामसुन्दर रहते हैं और कहाँ हम रहती हैं! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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