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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सारंगदेखन दै पिय, मदनगुपालै । (कोई विप्र-पत्नी कह रही ह-) ‘प्रियतम! मदनगोपाल को देख लेने दो। प्यारे! (मैं) हा-हा खाकर (तुम्हारे पैरों) पड़ती हूँ, जाकर उनकी रसमयी वंशी सुनने दो। अरे निर्बुद्धि पति! मुझे (हरि-दर्शन के लिये) व्याकुल वियोगिनी के शरीर को डंडा लेकर क्यों त्रास देते हो? (भला, जो उस) अत्यन्त शोभामय-(को पाने-) के लिये अत्यधिक उतावली है; उसके ह्रदय में यमराज यवन मृत्यु का क्या भय? प्रियतम! (मेरा) मन तो (वहाँ) पहले ही पहुँच गया है और अब प्राण भी वहीं चलने की बात चित्त से चाह रहे हैं। (किंतु) तुम यह तो बताओ कि अपने मतलब के लिये तुम (मुझे) रोककर इस दूषित (प्राणहीन) चमड़े का क्या करोगे? (अब तुम) इस शरीर की मिट्टी को सँभालो, इतने जंजाल को कौन रखे? सूरदास! (मैं तो देह त्यागकर) सब सखियों से आगे श्रीनन्दलाल से अरे मूढ़! अभी मिलती हूँ।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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