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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग धनाश्री [70] (श्यामसुन्दर बोल-श्रीराधे!) हम लोगों ने शरीर धारण इसीलिये किया है (अवतार इसीलिये लिया है) कि लोक की लज्जा तथा कुल की मर्यादा न छोड़ी जाय; जिससे सब लोग भला कहें (बड़ाई करें) । जो माता-पिता का भय मानता है, उसे कुटुम्ब के सब लोग सज्जन मानते हैं। पिता-माता मुझे भी प्रिय लगते हैं, शरीर धारण करने पर माया- (सांसरिक सम्बन्ध-) के वश होना (ही) पड़ता है। श्रीवृषभानुनन्दिनी! मेरी बात सुनो, पुरातन (मेरे प्रति अपने नित्य) प्रेम को छिपाये रहो। सूरदासजी कहते हैं कि श्यामसुन्दर नागरी श्रीराधा को कह रहे हैं— हम और तुम (वस्तुतः) एक ही हैं, दो हैं ही नहीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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