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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग जैतश्री[288] सूरदासजी के शब्दों में एक गोपी कह रही ह-(सखी! मेरे) नेत्रों का ऐसा स्वभाव हो गया है कि श्यामसुन्दर के चरणकमल पर ही लुब्ध होकर इन्होंने मुझे सर्वथा छोड़ दिया है। (मैं इन्हें) घूँघट की ओट करके रखती थी; (किंतु) देखो, इन्होंने अपने अनुरूप (ही) व्यवहार किया, मुझे दुःख देकर चले गये। उस (घूँघट की) आड़ को माना नहीं, जैसे हमारी उपेक्षा (इन्होंने) कर दी हो। वे (एक बार) गये सो (चले ही) गये, फिर लौटे (ही) नहीं; पता नहीं चित्त में क्या सोच लिया है। सुनो! (जो) मेरे द्वारा पाले-पोसे गये थे, उनको अब श्यामसुन्दर ने अपने वश में कर लिया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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