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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग कान्हरौ [30] (व्रज की गोपी ने) गोरस का अपना नाम तो भुला दिया; ‘कोई गोपाल लो, गोपाल लो!’ यह पुकार गली-गली में करनी प्रारम्भ दी। कोई कहती है— ‘श्याम लो!’ (तो) कोई कहती है— ‘कृष्ण लो!’ (और कोई कहती ह-) ‘आज मुझे दर्शन नहीं मिला।’ जिसे अपने शरीर का कुछ ज्ञान हो आता है, वह लोगों को ‘दही लो!’ की टेर सुनाने लगती है। एक (कोई प्रेमावेश में आकर) कह उठती है— ‘श्याम! तुम जो दान माँगते हो, यह (बात पहले थी) कही हुई है या तुमने ही (यह नयी प्रथा) चलायी है?’ सूरदासजी कहते हैं— सुनो, एक तो वह गोपी तरुणी होने के कारण यौवन के मद से मतवाली हो रही है, उस पर (यह) श्यामसुन्दर का महान् प्रेम (उसने) पा लिया है। (अतः उसका यह प्रेमोन्माद धन्य है।) |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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