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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिलावल [179] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-(सखी! मेरे) ऐसे (सुन्दर) नेत्र हुए तो क्या, (अब) मेरा तो उनसे कोई प्रयोजन नहीं। मैं तो व्याकुल होकर (इन्हें) पुकारती रही, पर मन इन्हें अपने साथ ले ही गया। (अब तो) तीनों लोकों में (इन्होंने) बड़ा नाम कमा लिया और श्याम के साथ-ही-साथ घूमते हैं। अपने सुख के लिये (इन्हें) और क्या चाहिये, (इसीलिये) मेरी ओर फिर (लौटकर) आये ही नहीं। सुपुत्र वह है, जो (अपना) परिवार चलाये; ये तो लालची हैं, (इसलिये) इन्हें धिक्कार है! इतने पर भी ये वीर कहलाते हैं, ऐसे लोगों को लज्जा (तो) होती नहीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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