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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग कान्हरौ [41] सूरदासजी के शब्दों में (यह सुनकर) वह गोपी कह रही है— ‘सखी! तू मुझे क्या कह रही है? (जब से) श्रीनन्दनन्दन ने मेरा मन चुरा लिया है, तभी से मुझे कुछ (भी) अच्छा नहीं लगता। अब तक मैं नहीं जानती थी कि मैं कौन थी और तू कब से मेरे पास आयी है, मेरा घर कहाँ है, माता-पिता कहाँ हैं, कहाँ पति, कहाँ गुरुजन हैं और कहाँ भाई हैं, लज्जा कैसी, मर्यादा कैसी और तू रुष्ट हो-होकर कहती क्या है। अब तो (मैंने) श्रीनन्दलाल से प्रेम किया है, फिर मेरी चाहे हेठी हो या प्रशंसा हो।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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