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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिहागरौ[237] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-(सखी! मेरे) नेत्र लोभ-ही-लोभ से पूर्ण हैं। जैसे चोर सम्पत्ति पूर्ण घर में घुस जाता है तो (वहाँ अपार सम्पत्ति को देखकर) कभी बैठता है, कभी उठता है, कभी (यह सोचता हुआ) खड़ा रहता है (कि क्या लूँ, क्या छोडूँ), उसी प्रकार (श्यामसुन्दर के) अंग-प्रत्यंग में सौन्दर्य की अपार निधि को देखकर नेत्र उसे ले नहीं पाते, चिन्ता में पड़ गये हैं। उपर्युक्त चोर जिस-जिस वस्तु को देखता है, वही-वही (उसे) अमूल्य दीखती है; अतः हाथ में ले (फिर उसे) वहीं रख देता है। उसी प्रकार (उस चोर के समान) ये लुब्ध हो गये हैं और हटाने से हटते नहीं, लोक लज्जा से भी नहीं डरते। इतने पर भी उनके हाथ कुछ नहीं लगा, लोभ रूपी जाग हो जाने से वे पकड़े गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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