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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग अड़ानौ [107] सूरदासजी के शब्दों में श्रीराधा कह रही ह-मेरा मन गोपाल ने हर लिया है; (उन्होंने मेरे) देखते ही नेत्रों के मार्ग से (मेरे) ह्रदय में घुसकर नहीं जानती कि क्या कर दिया। सखी! माता-पिता, पति, भाई, स्वजन आदि लोगों से सब आँगन और घर भरा था; लोक की लज्जा और वेद की मर्यादा रूप चौकीदार पहरा देते थे; (किंतु) उनसे भी रक्षा करते नहीं बना (वे भी रक्षा नहीं कर सके) । कुल की लज्जा रूपी कुंजी बनाकर तथा धैर्य का ताला लगाकर उस – (घर-) में धर्म को (रख) कठोर ह्रदय के भीतर पलकों के द्वार बंद करके रख दिया था; किंतु इतने उपाय करने पर भी कोई भी सफलता नहीं मिली। बुद्धि ने विचार-बल के साथ परिश्रम करके उस उत्तम (धर्म रूपी) धन को संचित कर रखा था, जो अविचल था, कभी टला नहीं था (मैं धर्म पर सदा दृढ़ रही); किंतु सखी! केवल देखकर ही (गोपाल ने) मेरा चित्त चुरा लिया, (उसी) सोच – (चिन्त-) से शरीर जला जा रहा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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