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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिलावल [116] सूरदासजी के शब्दों में श्रीराधा कह रही ह-सखी! मन के बिना मैं क्या करूँ; भला, (अपना) घर छोड़कर कोई दूसरे के यहाँ रहता है? मैं तो तभी से (उसके बिना) भटकती घूम रही हूँ। (यहाँ) अचानक ही आकर श्यामसुन्दर मेरे मन को ले गये, मैं बार-बार (उसे) रोकती (ही) रह गयी! (किंतु) मेरा कहना (वह) किसलिये सुनता, (वह तो) उधर ही मोहन के साथ चला गया। सखी! कहीं कोई ऐसा (काम) भी करता है; क्या करूँ? मैं तो हार गयी हूँ। श्यामसुन्दर को ऐसा नहीं करना था, उन्होंने ही (मेरे) मन को ढीठ बना दिया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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