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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग रामकली [219] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-(सखी! मेरे) नेत्र मोहन के (इस प्रकार) वश हो गये हैं, जैसे मृग संगीत – (स्वर-) के वश होकर उसके साथ – (पास-) से नहीं हटता। जैसे भौंरे कमल-कोश के वश होते हैं, जैसे चकोर चद्रमा के वश में होता है, वैसे ही ये धागे के वश पतंग की भाँति श्यामसुन्दर के वश हो गये। (अथवा) जैसे चातक स्वाती की बूँद के वश होता है, जैसे मछली जल के वश होती है, (वैसे ही) ये हमारे स्वामी के वश हो गये हैं; प्रतिक्षण (इनका) प्रेम (उनके प्रति) नया ही बना रहता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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