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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग जैतश्री [210] सूरदासजी के शब्दों में एक गोपी कह रही ह-सखी! नेत्र तो पक्षी हो गये, श्यामसुन्दर के सौन्दर्य रूपी चारे – (भोजन-) पर लुब्ध हुए उनकी अलकों के फंदे – (जाल-) में जा पड़े। (मोहन का) मयूर मुकुट ही मानो (पक्षी फँसाने की) टटिया है और उनकी ललित-त्रिभंगी (पक्षी के) बैठने का स्थान है, देखने की भंगी (पक्षी फँसाने के) बाँस हैं, प्रियतम का झुकना गोंद है और अलकों की तरंगे बाँस की पतली तीली (जिससे गोंद लगा होता है) । (उनके) मुख की मन्द मुसकराहट ही दौड़कर पकड़ना था, (अतः सौन्दर्य के) लोभ रूपी पिंजड़े में (पकड़कर) डाल दिये। (इस प्रकार) हमारे मन रूपी व्याध ने घर रूपी वन से उन्हें विस्मृत करा (पृथक् हटा) दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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