विषय सूची
अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग नटनारायन[286] सूरदासजी के शब्दों में एक गोपी कह रही ह-(सखी! मेरे) नेत्र कहना नहीं मानते हैं, जहाँ (इन्हें) प्रिय लगता है, अपने हठ से (ये) वहीं जाते हैं। समाज की लज्जा और वेद का मार्ग छोड़ते डरते नहीं, श्याम के आनन्द में ही पूर्ण (तृप्त) रहने के कारण इनके शरीर में रोमांच हुआ रहता है। प्रियतम के गुणों का ही ह्रदय में चिन्तन करते रहते हैं और उनका दर्शन करके (उन्हीं को पाने के लिये)ललचाये रहते हैं, हमको तो तनिक भी गिनते (ही) नहीं। यदि हम (श्याम से मिलने के लिये) पश्चात्ताप करती हैं तो ये मरने (व्याकुल होने) लगते हैं। मन-वाणी से ऐसी ही हठ पकड़ रखी है। कर्म से भी उनका ही ध्यान करते हैं, हमारे स्वामी के चरण-कमलों के (ये) भ्रमर होकर (उन्हें) रात-दिन भूलते नहीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पद | पद संख्या |